Wednesday, February 25, 2009

***** दर्द दिल में है पर मुस्करा

***** दर्द दिल में है पर मुस्करा

दर्द दिल में है पर मुस्करा
साँस खुलकर ले और खिलखिला

कर्ज तेरा है तू ही चुका
सर मगर अपना तू मत झुका

हाँ गिले-शिकवे होंगे सदा
तोड़ मत प्यार का सिलसिला

गर नहीं दम कि सच कह सके
बैठ तू बन कर इक झुनझुना

मत जुबाँ सी, अरे ‘श्याम’ तू
चोट खाई है तो बिलबिला

फ़ाइलुन,फ़ाइलुन,फ़ाइलुन
2111, 2111, 2111,

इस बार हम एक और रुक्न[खण्ड] पर गज़ल की तकतीअ कर देखते हैं।

दर्द दिल में है पर मुस्करा
२१ २२ , २ १ १ १ ११ १ २
दर=२ मुस्करा में हम मुस इकट्ठा बोलते हैं अत: ११=२ याने गुरू इस के बाद है क जो खुद ही लघु है,है की मात्रा गिर कर लघु हो गया है। और को अर पढा गया है गज़ल का सारा दारोमदार-ध्वनि पर आधारित है अगर आप लय में गुन्गुनायेंगे तो और अर ही बोल पायेंगे ,इसे गज़ल में जायज करार दिया गया है जैसे हिन्दी गीतो में और को ‘औ’गाया जाता है

5 comments:

  1. वाह , श्याम जी ,एक बार फिर कह रही हूँ आप तो जादूगर हैं ....
    मत जुबाँ सी, अरे ‘श्याम’ तू
    चोट खाई है तो बिलबिला
    वल्लाह !!!!
    सादर ,
    सुजाता

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  2. वाह श्याम साब वाह.....लाजवाब शेर सारे के सारे
    लेकिन रुक्न को हम २१२-२१२-२१२ भी तो गिन सकते हैं...फिर ये २१११-२१११-२१११ क्यों? उलझ गया हूँ ?

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  3. आप ठीक कह रहे हैं,असल में यह केवल इस बात को स्पष्ट करने के लिये है कि दो लघु =एक गुरु,एवम यह केवल वहीं संभव है जहां लघु अनिवार्य न हो जहां यह लघु लाल रंग मे चिह्नित नही है
    सस्नेह
    श्याम.इसे आज नये शीर्ष्क से दोबारा डाल रहा हूं लगता है सुजाता जी का शीर्षक ज्यादा लोगों को पसन्द आयेगा

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  4. wah behar,vazn, rukn adi ki zaankari se koson door hoon isliye kala pax ke bare main no comment.....
    ---par bhav bax bhi atulniya hai------
    chaliye.... ab apki agli ghazal padhta hoon...

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