कहने को हम दुनिया आधी
फ़िर भी हैं मर्दों की बांदी
गहने जेवर की सूरत में
बेड़ी ही हमको पहना दी
बिट्या रानी घर की शोभा
कहकर कीमत खूब चुका दी
डोली उठी पिता के घर से
पी के घर में चिता सजा दी
घर की साज-संवार करें हम
इतनी सी बस है आजादी
जन्म दिया आदम को हमने
जनम-जनम की हम अपराधी
बात बड़ी है सीधी सादी
औरत होना है बरबादी
घर तेरा है या है मेरा
असली बात यही बुनियादी
आधा हक ले के है रहना
बात आज तुम्हें यूं समझादी
अनाम को-‘बेरदीफ़ मुस्लसल’गज़ल गज़ल
वज्न-फ़ेलुन,फ़ेलुन,फ़ेलुन,फ़ेलुन-काफ़िया ‘ई’
मुस्लसल=आम तौर पर गज़ल का हर शे‘र आजाद होता है
यानि हर शे‘र में अलग विषय रहता है यही सर्वमान्य तथ्य है
लेकिन एक विषय पर आधारित गज़ल जिसे मुस्लसल’गज़ल
कहा जाता है,कहने की परम्परा भी है।
औरत अर्थात माँ होना पुण्य की बात है। यदि पुरुष अहंकार या यूँ कहें कि डर के कारण ही माँ को पुरुष की बांदी कहना सम्पूर्ण भारतीयता का अपमान करना है। भारत की स्त्री उभय भारती के रूप में शंकराचार्य से स्त्री-पुरुष सम्बन्धों पर शास्त्रार्थ करती है और आज भी स्त्री प्रत्येक घर का प्रबंधन करती है। इस प्रकार की कविता से केवल मात्र पुरुष के अहम की तो संतुष्टि होती है लेकिन समाज का उत्थान नहीं होता। यदि महिलाओं ने भी पुरुषों के बेचारगी वाले स्वरूप को उकेरना प्रारम्भ कर दिया तब शायद वो दुनिया का सबसे निरीह प्राणी दिखायी देगा।
ReplyDeleteमुसलसल गज़ल की अच्छी व्याख्या के लिए धन्यवाद।
ReplyDeleteआदरणीय श्याम जी ,
ReplyDeleteसच को जब साफ़ साफ़ कहा जाता है तो अक्सर बहुत से लोगों को बुरा लग जाता है ...पर अगर इसे इस तरह से देखा जाए की ...जब तक कोई सच कहेगा नही तब तक ..तक उसे सही करना मुश्किल है ....आपनें बहुत हद तक सच को जैसे का तैसा सामनें रखनें का प्रयास किया है ....
बेमिसाल गज़ल श्याम जी...और गज़ल के नीचे बहर के संग मुसल्सल गज़ल की व्याख्या के लिये धन्यवाद। ’लफ़्ज़’ की नयी प्रति में व्रत साब के आरोपों पर आपका जवाब पढ़ा। व्रत साब से मेरी बात होती रहती है। मुझे लगता है इन आरोप-प्रत्यारोप की बजाय आपदोनों आपस में बात कर लें एकबार तो बेहतर हो...
ReplyDeleteछोटी मुँह बड़ी बात कर गया हूँ,तो क्षमा चाहता हूँ।
जी श्याम जी, ये गजल मैंने पहले भी पढी थी जब आप ने अपनी पुस्तक भेजी थी मैंने
ReplyDeleteतब भी कहा था कि जितना आपने पुरुष होकर स्त्री के दर्द को पहचाना और लिखा है शायद
कोई स्त्री भी ऐसा न लिख पाती......आपको फिर एक बार बधाई...!!
Harkirat 'Haqeer'
nahi haqueer ji.....
ReplyDeletemain manta hoon,
jake per na padi bewai, wo kya jane dard parai
mario puzo was able to write 'the godfather' coz he was very near to gangstars. had khalied hussine would not been born in afagnistan we would have missed '1000 splendid suns' & 'the kite runner' in english literature, there z lot of difference b'ween sympathy and empathy....//shyam shakah sir ye chota muh badi baat hai magar phir bhi, apka poora blog padhen ke baad ye hi kahoonga ki yadi 'ek samany lekhak' ne agar ye liki hoti to ise main bahut badhiya kehta par kahan apki
रोक छ्लकती इन आँखों को
मीठी यादें ख़ारी मत कर
aur kahan ye !