Friday, February 20, 2009

जख्म मेरे खुले खिड़कियों की तरह

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दोस्तो पिछली बार हमने रुक्न फ़ऊलुन पर आधारित गज़ल पढी थी
आज एक और रुक्न याने फ़ाइलुन पर गज़ल देखें


घूमना है बुरा तितलियों की तरह
घर भी बैठा करो लड़कियों की तरह

दिल में उतरी थी वो बिजलियों की तरह
जब गई तो गई,आँधियों की तरह

उनकी बातें लगीं झिड़कियों की तरह
जख्म मेरे खुले खिड़कियों की तरह

आ लिखें ,फ़िर से खत ,एक दूजे को हम
बालपन में लिखीं तख्तियों की तरह

देखकर,आपको धड़कने ,हैं हुई
कूदती,फाँदती हिरनियों की तरह

जल गये मेरे अरमां सभी के सभी
फूंक डाली गईं झुग्गियों की तरह

छोड़ कर चल दिये वो हमें दोस्तो
आम की चूस लीं गुठलियों की तरह

बात अपनी कहो कुछ मेरी भी सुनो
शोख चंचल खिली लड़कियों की तरह

जिन्दगी फिर रही है तड़पती हुई।
जाल में फँस गई मछलियों की तरह

प्यार करना ही है गर तुम्हें तो करो
मीरा, राधा या फिर गोपियों की तरह


काश हो जाते हम नामवर दोस्तो
मिट गई प्यार में हस्तियों की तरह

चाहते आप ही बस नहीं हैं हमें
घूमता है जहां फिरकियों की तरह

आज मायूस है क्यों वो, कल तक जो थी
खेलती कूदती हिरनियों की तरह

माफ कर दें इन्हें आप भी ‘श्याम’ जी
आपकी अपनी ही गलतियों की तरह

फ़ाइलुन,फ़ाइलुन,फ़ाइलुन,फ़ाइलुन

2 comments:

  1. ये शेर बड़ा भाया "देखकर,आपको धड़कने ,हैं हुई / कूदती,फाँदती हिरनियों की तरह"
    वाह !!!

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  2. देखकर,आपको धड़कने ,हैं हुई
    कूदती,फाँदती हिरनियों की तरह

    kitni baar kahoon g wah ! sir wah !!

    aur to kuch keh hi nahi paa raha hoon bas maje le raha hoon.... //apki nazm ke, apke sher ke aur apke blog ke........
    :)

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