Saturday, March 14, 2009

रोज़ हथेली पर उसकी -गज़ल

गीत, गज़ल या गाली लिख
बात मगर मतवाली लिख

गहमा-गहमी खूब हुई
अब तो खामखय़ाली लिख

काँटे लिख चाहे जितने
फूलों की भी डाली लिख

लिख तू अमावस ही चाहे
लेकिन दीपों-वाली लिख

लिख मुस्कानें अधरों पर
असली लिख या जाली लिख

मौसम खूब सुहाना है
कोई गजल निराली लिख

पूरा गुलशन चहकेगा
पत्तों पर खुशहाली लिख

रोज़ हथेली पर उसकी
गजलें मेंहदी-वाली लिख

स्वागत किया बहारों का
मौसम ने, हरियाली लिख

अपने कल पर मत इतरा
आज को गौरवशाली लिख

'श्याम अलग तू दुनिया से
बातें भी अनियाली लिख

फ़ेलुन,फ़ेलुन,फ़ेलुन,फ़ा

4 comments:

  1. वाह जनाब! जो आप चाहें वही लिखे. ये तो लग रहा है इन्दिरा गान्धी की आत्मा समा गई है आपके भीतर

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  2. "रोज़ हथेली पर उसकी / गजलें मेंहदी-वाली लिख" इस शेर ने भीतर तक छुआ.....बहुत खूब सर

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  3. आदरणीय श्याम जी ,
    इन दो शेरो की गहराई तो असीम है

    लिख तू अमावस ही चाहे
    लेकिन दीपों-वाली लिख

    लिख मुस्कानें अधरों पर
    असली लिख या जाली लिख
    बहुत सुंदर ....

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  4. hi, nice to go through your blog...nice poem..by the way which typing tool are you using for typing Hindi...?

    Recently, I was searching for the user friendly Indian language typing tool and found... "quillpad"...do you use the same..?

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    jai..... ho....

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