Saturday, March 21, 2009

**** दर्द को दिल से लब पे आना था

दर्द को दिल से लब पे आना था
बेवफ़ाई तो इक बहाना था

उनका रुख से नकाब हटाना था
देखता रह गया जमाना था

प्यार था प्यार का बहाना था
प्यार लेकिन किसे निभाना था

ग़मजदा खुद ही वो मिला हमको
जख्म दिल का जिसे दिखाना था

हां वो मेरा रकीब था लेकिन
कातिलों से उसे बचाना था

आज कहते वो खराब हैं मुझको
कल तलक तो मै खानखाना था

राज़ उजागर हुआ अचानक ही
लाख चाहा जिसे छुपाना था

प्यार करना पड़ा था मजबूरन
दोस्त मौसम बड़ा सुहाना था

तुमसे मिलकर झुकी नजर मेरी
चूकता कब तेरा निशाना था

मैं तो था तेरी कफ़स में महफ़ूज
और मुझपर तेरा निशाना था

रूह रौशन हुई मुहब्बत से
जिस्म बेशक बहुत पुराना था



राह समझा दी एक बार उसने
रास्ता खुद हमें बनाना था

ग़म चुराकर चला गया मेरे
श्याम’सचमुच बहुत सयाना था

या
दिल चुराने में‘श्याम' था माहिर
दिल उसी से हमें बचाना था

फ़ाइलातुन, मफ़ाइलुन फ़ेलुन
2122 ,1212,211 [22]

5 comments:

  1. राह समझा दी एक बार उसने
    रास्ता खुद हमें बनाना था

    ग़म चुराकर चला गया मेरे
    श्याम’सचमुच बहुत सयाना था
    bahut sunder likha hai

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  2. राह समझा दी एक बार उसने
    रास्ता खुद हमें बनाना था

    ग़म चुराकर चला गया मेरे
    श्याम’सचमुच बहुत सयाना था

    waah lajawab gazal badhai

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  3. बहुत बढिया शायरी का नमूना था/ टिप्पणी तो एक बहाना था:)

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  4. Is Ghazal mein yeh mera sabse pasandeeda she'r hai

    राह समझा दी एक बार उसने
    रास्ता खुद हमें बनाना था

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  5. यह शेर बहुत भाया "रूह रौशन हुई मुहब्बत से/जिस्म बेशक बहुत पुराना था"
    वाह
    ....

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