Wednesday, March 4, 2009

ये भी क्या दिलबरी हुई साहिब ?


घर
जला,रोशनी हुई साहिब
ये भी क्या जिन्दगी हुई साहिब
तू नहीं और ही सही साहिब
ये भी क्या दिलबरी हुई साहिब
है मुझको हुनर इबादत का
सर झुका, बन्दगी हुई साहिब
भूलकर खुद को जब चले हम ,तब
आपसे दोस्ती हुई साहिब
खुद से चलकर तो ये नहीं आई
दिल दुखा,शायरी हुई साहिब
जीतकर वो मजा नहीं आया
हारकर जो खुशी हुई साहिब
तुम पे मरकर दिखा दिया हमने
मौत की बानगी हुई साहिब
श्यामसे दोस्ती हुई ऐसी
सब से ही दुश्मनी हुई साहिब

फ़ा इलातुन,मफ़ाइलुन, फ़ेलुन
सब से ही दुश्मनी हुई साहिब
२ १ २ २ १ २
२ २ २

5 comments:

  1. घर जला,रोशनी हुई साहिब
    ये भी क्या जिन्दगी हुई साहिब
    सच कहा ...आपनें यह भेई कोई जिन्दगी हुई ...?

    भूलकर खुद को जब चले हम ,तब
    आपसे दोस्ती हुई साहिब
    बेहद कड़वा सच है कोई मानें या न मानें

    है न मुझको हुनर इबादत का
    सर झुका, बन्दगी हुई साहिब
    सर उसी के आगे झुकता हैं न जिसे के लिए मन में श्रद्धा हो ....
    बहुत सुंदर ...

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  2. क्या खूब श्याम साब....क्या खूब,
    तुम पे मरकर दिखा दिया हमने
    मौत की बानगी हुई साहिब
    वाह वाह

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  3. वाह श्याम भाई वाह आपके तेवरों से मज़ा आ गया।

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  4. खुद से चलकर तो ये नहीं आई
    दिल दुखा,शायरी हुई साहिब
    जीतकर वो मजा नहीं आया
    हारकर जो खुशी हुई साहिब

    आपने क्या चार पंक्तियां लिखी
    बहुत खूब गज़ल हुई साहिब

    कमाल है, बहुत बढ़िया

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  5. और ये शेर भी लाजवाब है "खुद से चलकर तो ये नहीं आई/दिल दुखा,शायरी हुई साहिब" सर...

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