वो जो उलझे हैं सुलझ भी जाऍँगे
बीते पल लेकिन न फिर आ पाएँगे
सर उठाकर गर नहीं चल पाएँगे
फिर तो सब सिक्कों मे ही ढल जाएँगे
वे हमें ,हम भी उन्हें समझाएँगे
गर न समझे वो समझ हम जाएँगे
वक्त जाएगा निकल तब ,देखना
हाथ मलते लोग सब रह जायेंगे
अपना दामन साफ रखने के लिये
दाग़ दिल पर लोग कितने खाएँगे
वक्त को गर है बदलना `श्याम जी
आयें आगे वो जो सर कटवाएँगे
फ़ाइलातुन,फ़ाइलातुन,फ़ाइलुन
वे हमें ,हम भी उन्हें समझाएँगे
ReplyDeleteगर न समझे वो समझ हम जाएँगे
अपना दामन साफ रखने के लिये
दाग़ दिल पर लोग कितने खाएँगे
kya baat hai!
Pranaam
RC
ग़ज़ल बहुत अच्छी लगी,बधाई।
ReplyDeleteमैनें आप का ब्लाग देखा। बहुत अच्छा लगा।आप
मेरे ब्लाग पर आयें,यकीनन अच्छा लगेगा और अपने
विचार जरूर दें।प्लीज.............
हर रविवार को नई ग़ज़ल,गीत अपने तीनों
ब्लाग पर डालता हूँ।मुझे यकीन है कि आप
को जरूर पसंद आयेंगे....
प्रसन्न वदन चतुर्वेदी
gar aap hame samjhayenge
ReplyDeletehum kyon nahi samjh payenge
sundar prastuti
आदरणीय श्याम जी ,
ReplyDeleteदिल को चीरती हुई बेहद सच्ची गजल ....वाह.....!!!!!!
HATS OFF TO YOU !!!!
गर चाहा रब ने तो बेशक एक दिन
आप दुनिया का दस्तूर बदल जायेंगे
bahut umda, narayan narayan
ReplyDelete... बेहद खूबसूरत, प्रभावशाली व प्रसंशनीय अभिव्यक्ति।
ReplyDeleteश्याम जी, आप अच्छा नहीं बहुत अच्छा लिख रहे हैं. अच्छा लिखने वालों की संख्या कम है. कुछ टूटा फूटा प्रार्थी भी लिख रहा है. अगर फुर्सत मिले तो मुझे ब्लॉग पर देख कर अपनी कीमती राय दीजियेगा.
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