Monday, April 20, 2009

है यही क्या इश्क का दस्तूर साहिब - ग़ज़ल

दिल चुराकर चल दिये तुम दूर साहिब
है यही क्या इश्क का दस्तूर साहिब

सूझता अच्छा बुरा तुमको नहीं है
हो भला तुम किस नशे में चूर साहिब

आपकी मोहक खुशी का राज क्या है
आ गया क्या हाथ कोहेनूर साहिब

हाँ किनारा हम भी कर लेते, मगर हैं
दिल के हाथों हम हुए मजबूर साहिब

रोटियां बाजार से गुम हो गई है
खाएँगे क्या केक अब मजदूर साहिब

शोरोगुल का दबदबा जब से हुआ है
हो गया खामोश है सन्तूर साहिब

दर्द लिखकर मुफ़लिसों के हर गज़ल में
हो गया है ‘श्याम’ भी मशहूर साहिब

फ़ाइलातुन,फ़ाइलातुन,फ़ाइलातुन

16 comments:

  1. दर्द लिखकर मुफ़लिसों के हर गज़ल में
    हो गया है ‘श्याम’ भी मशहूर साहिब

    गजल के हर शेर उम्दा पर उपरोक्त मक़ता सर्व श्रेष्ठ लगा.
    बधाई.

    चन्द्र मोहन गुप्त

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  2. रोटियां बाजार से गुम हो गई है
    खाएँगे क्या केक अब मजदूर साहिब


    --बहुत खूब कहा!

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  3. रोटियां बाजार से गुम हो गईं हैं...अच्‍छी रचना। बधाई।

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  4. हाँ किनारा हम भी कर लेते, मगर हैं
    दिल के हाथों हम हुए मजबूर साहिब

    sabhi sher behatareen , umda. lajawaab rachna ke liye badhai.

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  5. बहुत खूब !! क्‍या कहने !!

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  6. हाँ किनारा हम भी कर लेते, मगर हैं
    दिल के हाथों हम हुए मजबूर साहिब

    BHOT HI KHUBSURAT GAZAL KAHI AAPNE YE SHE'R BEHAD UMDA AAPKO DHERO BADHAAYEE,..

    ARSH

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  7. ... बहुत खूब ... बधाई।

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  8. पहले तो मै आपका तहे दिल से शुक्रियादा करना चाहती हू कि आपको मेरी शायरी पसन्द आयी !
    बहुत ही खुबसूरत लिखा है आपने !

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  9. हो भला तुम किस नशे में चूर साहिब..
    बहुत खूब

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  10. बहुत खूब श्याम साब

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  11. आप के ब्लॉग पर आके अच्छा लगा . बहुत अच्छा लिखते हैं आप .बधाई.

    इस दुनिया में आके
    दिल से दिल लगाके
    जिसने प्यार न किया
    उसने यार न जिया।
    मैंने यह गीत का मुखडा लिखा है । पूरा गीत नहीं बन पा रहा है। ब्लोगरो से अपील है की मेरा यह गीत पूरा करने में मदद करें। गीत की पाँच अंतरा लिखनी हैं। जो भी ब्लोगर अंतरा लिखेगे उनका नाम अंतरा के सामने लिखा जाएगा। कमेन्ट बॉक्स में अपनी अंतरा लिखें । धन्यबाद ।

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  12. पहले तो मै आपका तहे दिल से शुक्रियादा करना चाहती हू कि आपको मेरी शायरी पसन्द आयी !
    आप का ब्लोग मुझे बहुत अच्छा लगा और आपने बहुत ही सुन्दर लिखा है !

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  13. शोरोगुल का दबदबा जब से हुआ है
    हो गया खामोश है सन्तूर साहिब

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  14. आप सभी की सहृद्‌यता को आभार
    श्याम सखा

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  15. हाँ किनारा हम भी कर लेते, मगर हैं
    दिल के हाथों हम हुए मजबूर साहिब

    रोटियां बाजार से गुम हो गई है
    खाएँगे क्या केक अब मजदूर साहिब

    shyaam ji,
    Ek baat bataaiye,

    मतले में फ़ाइलातुन कैसे बनेगा
    दिल(2) चुराकर(122) चल(2) दिये(12) तुम(2) दूर(21) साहिब(22)
    सही गिना न मैने।

    आपकी लिखी गज़ल में गिनना कितना आसान लगता है, पर अपनी लिखी गज़ल में इसी गणित को बिठाना अत्यंत मुश्किल लगता है।

    आज कल ज़िन्दगी के दांव पेच सुल्झाने में लगा हूं, इस लिये, गज़ल सीखने पर ध्यान नहीं दे पाता।

    फ़िलहाल तो, बे-बहर गज़ल ही लिखता हूँ
    कभी यहां भी आइयेगा -> http://tanhaaiyan.blogspot.com

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  16. ye do sher mere ko bahut pasand aaye

    हाँ किनारा हम भी कर लेते, मगर हैं
    दिल के हाथों हम हुए मजबूर साहिब

    रोटियां बाजार से गुम हो गई है
    खाएँगे क्या केक अब मजदूर साहिब

    lajaavaab......

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