खुद से आखिर कितना बोलूं मैं
क्या बस अपना चेह्रा देखूं मैं
अपने भी दिखते हैं बेगाने
दोस्त किसे अपना समझूं मैं
आईनो की तन्हा मह्फ़िल में
खुद में खुद को कब तक ढूंढूं मैं
देख तुझे यह हाल हुआ है
जब भी सोचूं तुझको सोचूं मैं
‘श्याम’सखा गर हो जाये मेरा
निशिदिन रास-रचाऊं, नाचूँ मैं
मेरा एक और ब्लॉग http://katha-kavita.blogspot.com/
क्या बस अपना चेह्रा देखूं मैं
अपने भी दिखते हैं बेगाने
दोस्त किसे अपना समझूं मैं
आईनो की तन्हा मह्फ़िल में
खुद में खुद को कब तक ढूंढूं मैं
देख तुझे यह हाल हुआ है
जब भी सोचूं तुझको सोचूं मैं
‘श्याम’सखा गर हो जाये मेरा
निशिदिन रास-रचाऊं, नाचूँ मैं
मेरा एक और ब्लॉग http://katha-kavita.blogspot.com/
आईनो की तन्हा मह्फ़िल में
ReplyDeleteखुद में खुद को कब तक ढूंढूं मैं
-बढ़िया.
chote bahar mein shaandaar ghazal hai bhai Sahab, zabardast samvedna se bhari hui...ek iltaja hai..Makta fir se dekhein...aakhiri line poori ghazal se ek dum juda hai...sadar
ReplyDeleteआपकी पोस्ट की चर्चा यहाँ भी है .....
ReplyDeleteआज के खास चिट्ठे ...
बढ़िया
ReplyDeleteअपने भी दिखते हैं बेगाने
ReplyDeleteदोस्त किसे अपना समझूं मैं
आईनो की तन्हा मह्फ़िल में
खुद में खुद को कब तक ढूंढूं मैं..
वाह! बहुत ही सुन्दर, शानदार और ज़बरदस्त ग़ज़ल लिखा है आपने!
मेरे नए पोस्ट पर आपका स्वागत है-
http://seawave-babli.blogspot.com/
http://ek-jhalak-urmi-ki-kavitayen.blogspot.com/
मजा नहीं आया....कुछ टूटा-टूटा सा है...
ReplyDeletegood
ReplyDeleteसुन्दर
ReplyDeleteबधाई हो आपको - विवेक जैन vivj2000.blogspot.com
सुन्दर डॉ साहब !लेकिन हमारे आग्रह करने पर भी आप कभी हमारे ब्लॉग पे नहीं आये .
ReplyDeletekubsurat aur mukammal gajal-mukammal baat.shyam ji lakh lakh badhai.
ReplyDeleteRAGHUNATH MISRA,KOTA(RAJ.)CONTACT:3-k-30,Talwandi,Kota-324005(RAJ.)Mob.09214313946
E-mail:raghunathmisra@ymail.com