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अभी तक सपन जो भी उर में थे लम्बित
हुए देख तुमको वे नयनों में अंकित
लजाने लगीं तितलियां बाग में तब
भंवर ने गुलों को किया जब भी चुम्बित
अचानक भरी प्यार से झोली उसकी
रहा था मुहब्बत से अब तक जो वंचित
सभी ख्वाब तो हैं बने टूटने को
किये जाते नाहक हो क्यों उनको संचित
जमाना कभी ‘श्याम’अनूठे को देखे
रहेगा खड़ा देखता वो अचम्भित
फ़ऊलुन,फ़ऊलुन.फ़ऊलुन,फ़ऊलुन,
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