Friday, February 6, 2009

गज़ल क्या है ?

गज़ल क्या है
बहुत लोगों ने बहुत कुछ कहा है लेकिन उलझा -उलझा ,
मुझे
जनाब निश्तर खान्काही साहिब यह उदाहरणसबसे सटीक लगा

बदला-बदला देख पिया को चुनरी भीगे सावन में
बस यह हुआ कि उसने तक्ल्लुफ़ से बात की
रो-रो के रात हमने दुपट्टे भिगो लिये
या

मेरी उम्र से दुगनी हो गई
बैरन रात जुदाई की

ये थी हमारी किस्मत कि विसाले यार होता
अगर और जीते रहते ,यही इन्तजार होता

जाग-जागकर काटूँ रतियां
सावन जैसी बरसें अँखियां

उठाके पाय़ँचे चलने का वो हंसी अन्दाज
तुम्हारी याद में बरसात याद आती है
अब देखिये इन तीनो उदाहरणों मे नंबर गीत हैं और गज़ल हैं
जबकि भाव एक ही हैं।यानि हम कह सकते हैं कि
गीत में स्त्रैण कोमलता है,जबकि गज़ल कहने में पुरुसार्थ झलकता है।
या गीत सीधे-सरल राह से अभिव्यक्ति का माध्यम है,वहीं गज़ल एक पहाडी घुमावदार पगडंडी है।
जैसे पहाड़ी पगडंडी पर पहली बार सफ़र कर रहे मुसाफ़िर को यह पूर्व अनुमान नहीं होता कि
अगले मोड़ पर पगडंडी दाईं तरफ़ मुड़ेगी या बाईं तरफ़,ऊपर की और पहाड़ पर चढ़ेगी
या आगे ढ़्लान मिलेगा
इसी तरह शे के पहले मिस्रे[पंक्ति] को सुन या पढकर श्रोता या पाठक जान ही नहीं पाता कि
अगले
मिस्रे मेंशायर क्या कहेगा।और अनेक बार दूसरा मिस्रा श्रोता को चमत्कृत कर जाता

इन्हें पढें और चमत्कृत हुआ महसूस करें
ये शे’र जनाब शहरयार साहिब के हैं।[उमराव जान फ़ेम वाले ]

अपनी सुबह के सूरज उगाता हूं खुद
[अब आगे सोचिये क्या कहा जा सकता है]

अपनी सुबह के सूरज उगाता हूं खुद
[अब आगे सोचिये क्या कहा जा सकता है]


जमीन तो जैसी है वैसी ही रहती है लेकिन

अब ये तीनो शे’र पूरे पढ़ें और देखें आप चमत्कृत होते हैं या नहीं

अपनी सुबह के सूरज उगाता हूं खुद
मैं चरागों की सांसो से जीता नहीं

जब्र का जहर कुछ भी हो पीता नहीं
मैंजमाने की शर्तों पे जीती नहीं

जमीन तो जैसी है वैसी ही रहती है लेकिन
जमीन बाँटने वाले बदलते रहते हैं


अगली बार हम बह्रों की बात करेंगे।आप अपनी टिपण्णी दें।गज़ल के विद्वान इस लेख में अगर कुछ त्रुटि पायें तो
उसे ठीक करने हेतु लिखें ।हम उनके आभारी होंगे

4 comments:

  1. बड़ा ही रोचक आलेख रहा ये। लेकिन शायद टाइप करते व्क्त कुछ तकनीकि व्यवधान पड़ा है जिसकी वजह से बातें स्पष्ट नहीं हो पा रही।
    और एक और निवेदन ये था कि इस टिप्पणी की सेटिंग में से वर्ड-वेरिफिकेशन हटा दें तो मेहरबानी होगी। इससे कोई फयादा है नहीं और उल्टा टिप्पणी करने वालों को रोकता अलग है

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  2. सर जब आप अपने ब्लौग पर लाग इन करते हैं,तो जो डैशबोर्ड आता है उसी में सेटिंग आती है,एक बार उसको देख लें। बड़े ही सरल भाषा में सब कुछ दिया है। और ये ब्लौग की दुनिया बड़ी ही स्वार्थी है सर। यहाँ पर एक लेन-देन की अलिखित प्रथा सी है। एक गंदी प्रथा। लेकिन आप तनिक भी चिंता न करें। लोग धीरे-धीरे आना शुरू करेंगे। कुछ मैं भी बता रहा हूँ लोगों को आपके इस ब्लौग के बारे में।
    तो उस डैशबोर्ड की सेटिंग में जाकर "एड गैजेट" के जरिये आप अन्य ब्लौगों के लिंक अपने ब्लौग पर जोड़ सकते हैं।
    दूसरा हिंदी टाइप करने के लिये बेहतर होगा कि आप ये एक फ्री साफ्टवेयर है baraha इसे डाउनलोड कर लें। बड़ा फायदेमंद है ये । लगभग नब्बे प्रतिशत हिंदी ब्लौगर इसका प्रयोग कर रहे हैं।
    you can download it from barah.com

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  3. ...और एक बात और सर कि आपको अपने इस ब्लौग को चिट्ठा-चरचा और ब्लौगवाणी जैसे अग्रीगेटर से जोड़ना पड़ेगा उनका विजेट लगा कर। फिर आप जैसे ही नया कोई पोस्ट लगायेंगे,वो उधर दिखने लगेगा और फिर पाठक आने लगेंगे....

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  4. आपका ये पोस्ट मैं शायद हिन्द युग्म पर पहले भी पढ़ चुका हूँ
    आज दोबारा से पढ़ा है।

    धन्यवाद

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