Saturday, February 14, 2009

***उर्दू और हिन्दी गज़ल में मोटे तौर पर मात्र दो बातों का अन्तर है

गज़ल कहना या लिखना शुरू करते हैं
उर्दू और हिन्दी गज़ल में मोटे तौर पर मात्र दो बातों का अन्तर है
एक-
क्लिष्ट उर्दू शब्दों का प्रयोग [अगर संस्कृतनिष्ठ हिन्दी शब्दों का प्रयोग होगा तो]हिन्दी भी क्लिष्ट
हो जाएगी।[ क्लिष्ट शब्द ,वे शब्द जो आम बोलचाल की भाषा में प्रयोग नहीं होते और आम आदमी की
समझ में उनका अर्थ नहीं आता=आम आदमी का मतलब किसी आबादी का बहुमत
चाहे पढ़ा-लिखा हो या
अनपढ ]
दो-
उर्दू समास का प्रयोग यथा= काबिले-गौर-हिन्दी व्याकरण में हम इसे गौर के काबिल ही कहेंगे।और
कुछ लोगों का मानना है कि इस समास प्रयोग के बिना गज़ल लिखना संभव नहीं।पर ऐसा नहीं है
आगे चल कर हम इसके उदाहरण भी देंगे।


उर्दू में गज़ल लिखने का कि बजाय गज़ल कहना ज्यादा सही,नफ़ासत की बात मानी जाती है।क्यों ?
शायरों का मानना है कि गज़ल [मैं तो कहूंगा हर कविता दिल में निर्झर की तरह फूटे तभी मर्म को छूने
वाली रचना हो सकती है,अत: वे कहते हैं लिखी तो ‘इमला’ जाती है, गज़ल तो कही जाती है।
तो गज़ल कहने के लिये रुक्न [खण्ड] जानना आवश्यक पर सारे लगभग ३० रूक्नों का ज्ञान कतई जरूरी नहीं है।
कुल आठ-दस भी रूक्न जान कर कोई भी बखूबी गज़ल कह सकता है।
ये आठ दस रुक्न हैं ये
पहले हम फ़ऊलुन को लेते हैं,फिर इन१० रुक्नों को बारी-बारी लेंगे
फ़ऊलुन=चलाचल=१ २ २
इस रुक्न को दो,तीन या चार बार दोहरा कर गज़ल बन सकती है यथा- १२२,१२२,=१० मात्रा या१२२, १२२,१२२, =१५ मात्रा या१२२, १२२, १२२,१२२= २० मात्रा,कभी-कभी इनके अन्त में फ़ऊ=१२ भी जोड़ा जा सकता है
तब बह्र का वज्न होगा
यथा- १२२,१२२,१३=१३ मात्रा या१२२, १२२,१२२,१२ =१८ मात्रा या१२२, १२२, १२२,१२२ १२= २३ मात्रा।
अब इस बहर की एक गज़ल की गणना कर के देखते हैं।

बने फिरते थे जो जमाने मे शातिर
पहाड़ों तले आये वे ऊंट आखिर

छुपाना है मुशकिल इसे मत छुपा तू
हमेशा मुह्ब्बत हुई यार जाहिर

बना क़ैस ,रांझा बना था कभी मैं
मेरी जान सचमुच मैं तेरी ही खातिर

खुदा को भुलाकर तुझे जब से चाहा
हुआ है खिताब अपना तब से ही काफिर

बनी को बिगाड़े, बनाये जो बिगड़ी
कहें लोग हरफ़न में उस को तो माहिर

मुझे छोड़कर तुम कहां जा रहे हो
हमीं दो तो हैं इस सफर के मुसाफिर

तेरी खूबियां 'श्याम' सब ही तो जाने
खुशी हो कि ग़म तू हरदम है शाकिर

गणना या तकतीअ
बने फिर ते थे जो जमाने मे शातिर
१२ २, २ २ १ २ २ २ २
पहाड़ों तले आ ये वे ऊंट आखिर
१ २ २, १२ २, २ २. १ २ ११=२

छुपाना है मुशकिल इसे मत छुपा तू
१२ २, २ २ ११ २ २
हमेशा मु ह्ब्बत हुई या जाहिर
१२ २, १ २ २ १ २ २ ११

बना क़ै स ,रांझा बना था कभी मैं
१२ २, १ २ २ १ २ २ १ २ २
मेरी जा न सचमुच मैं तेरी ही खातिर
१२ २, १ २ २ २ २ २ २

खुदा को भुलाकर तुझे जब से चाहा
१२ २, १ २ ११ १ २ ११ २ २
हुआ है खिताब अप ना तब से ही काफिर
१२ २, १ २ २ २ २ १ २ २

यहां खिता के बाद ब+अप=बप और ना कि मात्रा गिर जाएगी
हुआ है खिताबप ना तब से ही काफ़िर
१ २ २ १ २ ११ १ ११ २ ११
इस क्रिया को मदग्म होना कहा जाता है
यानि किसी लघु के बाद अगर स्वर अ,आ,इ,ई उ,ऊ,ओ,औ,आ जाये तो
वह दोनो मिल सकते हैं और देखें याद आता वैसे २१२२,=७ मात्रा है
लेकिन इसे यादाता=२२२= ६ मात्रा भी किया जा सकता है गज़ल नियमनुसार=संगीत
नियमानुसार भी



बनी को बिगाड़े, बनाये जो बिगड़ी
१ २ २ १ २ २ १ २ २ २ २
कहें लो ग हरफ़न में उस को तो माहिर
१ २ २ १ १ १ १ १ १ २ १ २ ११
मुझे छो ड़कर तुम कहां जा र हे हो
१ २ २ ११ ११ १ २ २ १ २ २
हमीं दो तो हैं इस सफर के मुसाफिर
१ २ २ ११११ २ १ २ ११
तेरी खू बियां 'श्या म' सब ही तो जाने
१ २ २ २ २ १ १ २ १ २ २
खुशी हो कि हो ग़म तू हरदम है शाकिर
१ २ २ १ २ ११ ११११ १ २ ११

मित्रो एक बात और जहां
लाल रंग में है,वहाँ न केवल लघु अनिवार्य है अपितु वह गिरा कर भी बनाया जा सकताहैउसी तरह नीले रंग में चिह्नित दो लघुओं को गुरू गिना जा सकता है
जैसे अन्तिम पंक्ति मे
हरदम के चार लघु कोगुरू या शाकिर के किर को दो लघु के स्थान पर एक गुरू
आगे चलकर हम एक और बह्र पर बात करेंगे।

9 comments:

  1. बहुत सुंदर ढ़ंग से बताया आपने श्याम जी इस बात को और वो भी अपनी इतनी प्यारी गज़ल के साथ।
    एक शक था कि आपने जो कहा कि किसी लघु के बाद अ,आ,इ,ई आये तो उन्हें मिला सकते हैं। ऐसा कई गज़लों मेंदेखा भी है मैंने।
    अब जैसे कि "ऊँची ईमारत" क्या यहाँ पर ’ची’ के साथ ’ई’ को मिलाकर एक दीर्घ गिना जा सकता है?

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  2. यानि किसी लघु के बाद अगर स्वर अ,आ,इ,ई उ,ऊ,ओ,औ,आ जाये तो वह दोनो मिल सकते हैं और देखें याद आता वैसे २१२२,=७ मात्रा है
    लेकिन इसे यादाता=२२२= ६ मात्रा भी किया जा सकता है गज़ल नियमनुसार=संगीत
    नियमानुसार भी

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  3. प्रिय गौतम अगर इसे ठीक से पढें तो आपकी समस्या हल हो जाएगी ऊंची की स्वयं ही‘ची’ गुरू है और हम मदगम केवल लघु वर्ण के बाद आयी मात्रा य स्वर को ही कर सकते हैं।यानि किसी लघु के बाद अगर स्वर अ,आ,इ,ई उ,ऊ,ओ,औ,आ जाये तो
    वह दोनो मिल सकते हैं और देखें याद आता [याद का द लघु है इसी लिये आया का आ [द+आ] उस में मिलकर दा बन पाया है] वैसे २१२२,=७ मात्रा है
    लेकिन इसे यादाता=२२२= ६ मात्रा भी किया जा सकता है गज़ल नियमनुसार=संगीत
    आशा है अब सब सपष्ट हो गया होगा
    नियमानुसार भी

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  4. डाक्टर साहब, ये गज़ल का गणित तो अब तक नहीं जान पाया और शायद भविष्य में भी दुर्लभ हो पर आपका लेख ज्ञानवर्धक है। आगे भी पढ़ते रहेंगे।

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  5. आदरणीय श्याम जी ,
    आपकी बहुत आभारी हूँ , यह ब्लॉग शुरू कर के आपनें बहुत उपकार किया है ...ग़ज़ल सीखना चाहनें वालों पर ....
    सादर ,
    सुजाता

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  6. आदरणीय श्याम जी ,

    लेख बेहद रोचक है ...बहर पक्ष जो अब तक बेहद कठिन दिख रहा था ...आसान होता नजर आ रहा है बहुत बहुत शुक्रिया

    यह तो समझ आ गया की लघु के बाद अगर स्वर आ जाए तो उस मात्रा को दीर्घ गिन सकते हैं ...लेकिन शाकिर में जैसा आपनें कहा की २११ को २२ भी गिन सकते हैं लेकिन 'कि' तो पहले ही २ मात्रा है ...और मात्रा का गिरना कुछ और स्पष्ट कर दीजिये ...गा कर देखनें में कैसे हो गा ..अगर कोई और उद्धरण दे दे तो मदद हो जायेगी

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  7. प्रिय sangharshhijiwan ब्लॉग पर आने हेतु शुक्रिया। कि-लघु है न कि,गुरु
    अगर आप इस बलॉग के अन्य लेख पढें तो स्पष्ट हो जायेगा
    अ.उ,इ,लघु ही होते हैं ए को लघु गुरू दोनो पढ़ा जा सकता है ,ई
    ऊ,ओ,औ,अं गुरू गिने जाते हैं

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  8. आदरणीय श्याम जी ,
    बहुत बहुत शुक्रिया ...
    सादर ,
    सुजाता

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  9. jalwe duniya main ab nahi hote
    kuy hai tira shayari ka to fir,

    (please don't measure the above comments in vazn,rukn etc.)

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