Tuesday, February 10, 2009

गज़ल क्या है


गज़ल क्या है ?


बहुत लोगों ने बहुत कुछ कहा है लेकिन उलझा -उलझा ,
मुझे
जनाब निश्तर खान्काही साहिब यह उदाहरणसबसे सटीक लगा

बदला-बदला देख पिया को चुनरी भीगे सावन में
बस यह हुआ कि उसने तक्ल्लुफ़ से बात की
रो-रो के रात हमने दुपट्टे भिगो लिये
या

मेरी उम्र से दुगनी हो गई
बैरन रात जुदाई की


ये थी हमारी किस्मत कि विसाले यार होता
अगर और जीते रहते ,यही इन्तजार होता

जाग-जागकर काटूँ रतियां
सावन जैसी बरसें अँखियां

उठाके पाय़ँचे चलने का वो हंसी अन्दाज
तुम्हारी याद में बरसात याद आती है

अब देखिये इन तीनो उदाहरणों मे नंबर गीत हैं और गज़ल हैं
जबकि भाव एक ही हैं।यानि हम कह सकते हैं कि गीत में स्त्रैण कोमलता है
,जबकि गज़ल कहने में पुरुषार्थ झलकता है।
या
गीत सीधे-सरल राह से अभिव्यक्ति का माध्यम है,वहीं गज़ल एक पहाडी घुमावदार पगडंडी है।
जैसे पहाड़ी पगडंडी पर पहली बार सफ़र कर रहे मुसाफ़िर को यह पूर्व अनुमान नहीं होता कि
अगले मोड़ पर पगडंडी दाईं तरफ़ मुड़ेगी या बाईं तरफ़,ऊपर की और पहाड़ पर चढ़ेगी
या आगे ढ़्लान मिलेगा
इसी तरह शे के पहले मिस्रे[पंक्ति] को सुन या पढकर श्रोता या पाठक जान ही नहीं पाता कि
अगले
मिस्रे मेंशायर क्या कहेगा।और अनेक बार दूसरा मिस्रा श्रोता को चमत्कृत कर जाता

इन्हें पढें और चमत्कृत हुआ महसूस करें
ये शे’र जनाब शहरयार साहिब के हैं।[उमराव जान फ़ेम वाले ]

अपनी सुबह के सूरज उगाता हूँ खुद
[अब आगे सोचिये क्या कहा जा सकता है]

जब्र का जहर कुछ भी हो पीता नहीं
[अब आगे सोचिये क्या कहा जा सकता है]


जमीन तो जैसी है वैसी ही रहती है लेकिन

अब ये तीनो शे’र पूरे पढ़ें और देखें आप चमत्कृत होते हैं या नहीं

पनी सुबह के सूरज उगाता हूं खुद
मैं चरागों की सांसो से जीता नहीं

जब्र का जहर कुछ भी हो पीता नहीं
मैं जमाने की शर्तों पे जीता नहीं

जमीन तो जैसी है वैसी ही रहती है लेकिन
जमीन बाँटने वाले बदलते रहते हैं


यति और गति या ग्त्यात्मकता और लयात्मक्ता के बिना गज़ल का अस्तित्व ही नहीं हो सकता।क्योंकि गज़ल की बुनियाद सरगम की तरह संगीत के आधार पर[और कहें तो गणित के आधार पर] टिकी है।गज़ल का हर शे‘र अपने आप में सम्पूर्ण तो होता ही है,
वह श्रोता या पाठक को अद्भुत,आकर्षक,अनजाने और एक निराले अर्थपूर्ण अनुभव तक ले आने में सक्षम होता है।
देखें कुछ उदाहरण

चाँद चौकीदार बनकर नौकरी करने लगा
उसके दरवाजे के बाहर रोशनी करने लगा

चाँद को चौकीदार केवल गज़ल का शायर ही बना सकता है

बाल खोले नर्म सोफ़े पर पड़ी थी इक परी
मेरे अन्दर एक फ़रिश्ता खुद्कुशी करने लगा

अब बतलाएं फ़रिश्ते को खुद्कुशी करवाना शायर ,गज़ल के शायर् के अलावा और किसके वश में है
ऐसा विचित्र एवम चमत्कृत करने वाला अनुभव साहित्य की किस विधा में मिल सकता है
कुछ और उदाहरण देखें
तुझे बोला था आँखे बंद रखना
खुली आँखों से धोखा खा गया ना
मेरे मरने पे कब्रिस्तान बोला
बहुत इतरा रहा था आ गया ना
(जनाब-महेश दर्पण)
मित्रो एक बात और गज़ल की सारी कमनीयता,सौष्ठव व चमत्कृत करने की क्षमता बहर या छंद पर ही टिकी है.
हम कह सकते हैं कि गज़ल शब्दों की कलात्मक बुनकरी है ।
अगर हम उपरोक्त शेर को बह्र के बिना लिखें
मरने पे मेरे कब्रिस्तान बोला
इतरा रहा था
बहुत आ गया ना

आप ही कहें सारे शब्द वही हैं ,केवल उनका थोड़ा सा क्रम बदलने से क्या वह आनन्द जो पहली बुनकरी में था,गायब नहीं हो गया।बस इसी लिये बहर का ज्ञान आवश्यक है



अगली बार हम बह्रों की बात करेंगे।आप अपनी टिपण्णी दें।गज़ल के विद्वान इस लेख में अगर कुछ त्रुटि पायें तो
उसे ठीक करने हेतु लिखें ।हम उनके आभारी होंगे

6 comments:

  1. आपका हिन्दी चिट्ठाकारी में हार्दिक स्वागत है. नियमित लेखन के लिए शुभकामनाऐं.

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  2. Aapka Istakbal Hai. Is Naye Sansar Mai.

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  3. बहुत सुंदर. स्वागत ब्लॉग परिवार में.

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  4. श्याम जी.......बहुत खूबसूरत नदाज़ में ग़ज़ल के पेच खोले हैं आपने.......
    बधाई

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  5. 3 comments:

    गौतम राजरिशी said...

    बड़ा ही रोचक आलेख रहा ये। लेकिन शायद टाइप करते व्क्त कुछ तकनीकि व्यवधान पड़ा है जिसकी वजह से बातें स्पष्ट नहीं हो पा रही।
    और एक और निवेदन ये था कि इस टिप्पणी की सेटिंग में से वर्ड-वेरिफिकेशन हटा दें तो मेहरबानी होगी। इससे कोई फयादा है नहीं और उल्टा टिप्पणी करने वालों को रोकता अलग है
    February 6, 2009 4:31 AM
    गौतम राजरिशी said...

    सर जब आप अपने ब्लौग पर लाग इन करते हैं,तो जो डैशबोर्ड आता है उसी में सेटिंग आती है,एक बार उसको देख लें। बड़े ही सरल भाषा में सब कुछ दिया है। और ये ब्लौग की दुनिया बड़ी ही स्वार्थी है सर। यहाँ पर एक लेन-देन की अलिखित प्रथा सी है। एक गंदी प्रथा। लेकिन आप तनिक भी चिंता न करें। लोग धीरे-धीरे आना शुरू करेंगे। कुछ मैं भी बता रहा हूँ लोगों को आपके इस ब्लौग के बारे में।
    तो उस डैशबोर्ड की सेटिंग में जाकर "एड गैजेट" के जरिये आप अन्य ब्लौगों के लिंक अपने ब्लौग पर जोड़ सकते हैं।
    दूसरा हिंदी टाइप करने के लिये बेहतर होगा कि आप ये एक फ्री साफ्टवेयर है baraha इसे डाउनलोड कर लें। बड़ा फायदेमंद है ये । लगभग नब्बे प्रतिशत हिंदी ब्लौगर इसका प्रयोग कर रहे हैं।
    you can download it from barah.com
    February 6, 2009 9:56 AM
    गौतम राजरिशी said...

    ...और एक बात और सर कि आपको अपने इस ब्लौग को चिट्ठा-चरचा और ब्लौगवाणी जैसे अग्रीगेटर से जोड़ना पड़ेगा उनका विजेट लगा कर। फिर आप जैसे ही नया कोई पोस्ट लगायेंगे,वो उधर दिखने लगेगा और फिर पाठक आने लगेंगे....
    February 6, 2009 11:02 PM

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  6. wah jee wah! bahut hee majedar raha aapke blog ka safar. narayan narayan

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