Friday, March 27, 2009

मन ढोलक की थाप हुआ



कुछ भी कहना पाप हुआ
जीना भी अभिशाप हुआ

मेरे वश में था क्या कुछ ?
सब कुछ अपने आप हुआ

तुमको देखा सपने में
मन ढोलक की थाप हुआ

कह कर कड़वी बात मुझे
उसको भी संताप हुआ

दर्द सुना जिसने मेरा
जब तक ना आलाप हुआ

शीश झुकाया ना जिसने
वो राना प्रताप हुआ

पैसा- पैसा- पैसा ही
सम्बन्धों का माप हुआ

इतना पढ़-लिखकर भी 'श्याम’
सिर्फ अगूंठा-छाप हुआ

12 comments:

  1. इतना पढ़-लिखकर भी 'श्याम’
    सिर्फ अगूंठा-छाप हुआ..........

    मन की व्यथा को बहुत सही प्रस्तुत किया है

    मेरी कलम - मेरी अभिव्यक्ति

    ReplyDelete
  2. दर्द सुना जिसने मेरा
    जब तक ना आलाप हुआ
    बहोत खूब कही आपने ये ग़ज़ल...ये शे'र खासा पसंद आया ... ढेरो बधाइयां कुबूल करें...

    अर्श

    ReplyDelete
  3. शीश झुकाया ना जिसने
    वो राना प्रताप हुआ

    पैसा- पैसा- पैसा ही
    सम्बन्धों का माप हुआ

    इतना पढ़-लिखकर भी 'श्याम’
    सिर्फ अगूंठा-छाप हुआ
    बहुत बढ़िया।

    ReplyDelete
  4. bahut khuub
    कुछ भी कहना पाप हुआ
    जीना भी अभिशाप हुआ

    मेरे वश में था क्या कुछ ?
    सब कुछ अपने आप हुआ

    तुमको देखा सपने में
    मन ढोलक की थाप हुआ

    कह कर कड़वी बात मुझे
    उसको भी संताप हुआ
    sundar!

    ReplyDelete
  5. अयहय श्याम साब "तुमको देखा सपने में/मन ढोलक की थाप हुआ"
    क्या बात है...वाह
    और ये शेर "शीश झुकाया ना जिसने/वो राना प्रताप हुआ" वाह वाह
    दिल से

    ReplyDelete
  6. Toooooo Good shyaam ji...
    Very good...mazaa aa gaya padh kar...

    ReplyDelete
  7. Wah kai dino ki fursat ke baad aay sir ji,
    Kyu nahi aaya bas iska "Pashchtaap hua"..

    तुमको देखा सपने में
    मन ढोलक की थाप हुआ

    कह कर कड़वी बात मुझे
    उसको भी संताप हुआ

    ReplyDelete
  8. बेहतरीन रचना ।
    कविता,गज़ल और शेर के लि‌ए मेरे ब्लोग पर स्वागत है ।
    http://www.rachanabharti.blogspot.com
    कहानी,लघुकथा एंव लेखों के लि‌ए मेरे दूसरे ब्लोग् पर स्वागत है
    http://www.swapnil98.blogspot.com
    रेखा चित्र एंव आर्ट के लि‌ए देखें
    http://chitrasansar.blogspot.com

    ReplyDelete
  9. इस ग़ज़ल को पढ़कर मेरे यह विचार हैं ...
    अब मैं ये कहना बंद कर देती हूँ के गजल अच्छी लगी :-) इसे तो मान कर ही चलते हैं ... !

    Yeh ashaar khaas achche lage -
    मेरे वश में था क्या कुछ ?
    सब कुछ अपने आप हुआ

    तुमको देखा सपने में
    मन ढोलक की थाप हुआ
    (too good!)

    कह कर कड़वी बात मुझे
    उसको भी संताप हुआ

    इतना पढ़-लिखकर भी 'श्याम’
    सिर्फ अगूंठा-छाप हुआ
    --------------

    दर्द सुना जिसने मेरा
    जब तक ना आलाप हुआ
    Finding hard to understand this ...

    Pranaam
    RC

    ReplyDelete
  10. इतना पढ्कर भी श्याम
    अंगूठा छाप हुआ.

    -बहुत सटीक है, पर इतना पढ्ने का
    दम्भ झलकता है.
    - अन्यथा न लें। दिल की ही तो बात है।
    डा श्यम गुप्त

    ReplyDelete
  11. श्याम सखाजी,
    आपका यह कहना ठीक है कि कविता छंन्द से हुई । पर अतुकान्त , मुक्त छंन्द भी छंद ही हें। वस्तुतः पाठक कविता से दूर मुक्त छंन्द के कारण नहीं, कवियों द्वारा निरर्थक कविता, निराशय कविता व सामाजिक सरोकारों को भूल्ने के कारण दूर हुए हैं।
    गज़ल के जा्म ओ मीना व सामयिक ,सामाजिक विषय के कारण वे प्रशिद्ध हो रहीं हैं।
    सन्सार के सर्व् श्रेश्ठ गीत ,साम गीत अतुकन्त हैं। मेरे अगले ब्लोग मैं मेरे अतुकान्त ,लय्बद्ध गीत क्रिपा कर के देखें। बताएं।

    ReplyDelete