Thursday, June 4, 2009

*****जख्म मेरे खुले खिड़कियों की तरह* * *


दिल में उतरी थी वो बिजलियों की तरह
जब गई तो गई आंधियों की तरह
उनकी बातें लगीं झिड़कियों की तरह।
जख्म मेरे खुले खिड़कियों की तरह।।

जल गये मेरे अरमां सभी के सभी।
फूंक डाली गई झुग्गियों की तरह।।


छोड़ कर चल दिये वो हमें दोस्तो।

आम की चूस लीं गुठलियों की तरह।।


बात अपनी कहो कुछ मेरी भी सुनो।
शोख चंचल खिली लड़कियों की तरह।।


जिन्दगी फिर रही है तड़पती हुई।
जाल में फँस गई मछलियों की तरह।।


प्यार करना ही है गर तुम्हें तो करो।
मीरा, राधा या फिर गोपियों की तरह।।


काश हो जाते हम नामवर दोस्तो।
कैस,मजनूं या फिर रोमियों की तरह


आ लिखें,फ़िर से खत,एक दूजे को हम
बालपन में लिखीं तख्तियों की तरह


देखकर,आपको धड़कने ,हैं हुई
कूदती,फाँदती हिरनियों की तरह

टूट ही तो गये मेरे सपने सभी
पनघटों पे टूटी मटकियों की तरह


चाहते आप ही बस नहीं हैं हमें।
घूमता है जहां फिरकियों की तरह।।


माफ कर दें इन्हें आप भी ‘श्याम’ जी।
आपकी अपनी ही गलतियों की तरह।।

घूमना है बुरा तितलियों की तरह।
घर भी बैठा करो लड़कियों की तरह।।

10 comments:

  1. एक डाक्टर होते हुए आप लिखते है कवियों की तरह:-) बधाई डॊ.साहब।

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  2. छोड़ कर चल दिये वो हमें दोस्तो।
    आम की चूस लीं गुठलियों की तरह।।..
    बहुत उम्दा लगी ये लाइनें .

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  3. वाह, क्या बात है!
    घुघूती बासूती

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  4. माफ कर दें इन्हें आप भी ‘श्याम’ जी।
    आपकी अपनी ही गलतियों की तरह।।

    मक्ता बहुत खूबसूरत लगा

    वीनस केसरी

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  5. और दर्द पर मरहम लगाया डॉक्टरी की तरह !
    very good gajal daksab.

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  6. बहुत खूब श्याम भाई। क्या बात है।

    डाक्टर की गजल को पढ़ा खूब ध्यान से।
    जैसे कोई चिट्ठा पढ़े रोगियों की तरह।।

    सादर
    श्यामल सुमन
    09955373288
    www.manoramsuman.blogspot.com
    shyamalsuman@gmail.com

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  7. शुक्रिया साहिबान

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  8. जख्‍म मेरे खुले खिडकियों की तरह। बहुत खूब लिखते हैं आप।

    -Zakir Ali ‘Rajnish’
    { Secretary-TSALIIM & SBAI }

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  9. namskaar
    aapka andaje bayan sach sabse juda hai

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  10. श्याम जी.......... कितनी सीधी सीधी बात..........क्या काफिया चुना है आपने........... हर शेर खूबसूरत शेर...........सब ज़िन्दगी के आस पास बिखरे हुवे से हैं

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