Monday, June 15, 2009



जानेमन इतनी तुम्हारी याद आती है कि बस
रूह मिलने के लिये यूं कसमसाती है कि बस

तेरी सांसे जब मिलीं थी मेरी सांसों से सनम
वो घड़ी बिजली बनी सी कौंध जाती है कि बस

ये विरह का दुख सगा सा हो गया है दोस्तो
शूल सी इसकी चुभन इतना सताती है कि बस



रास्तो
की धूल ने मुझको सिखाए ये हुनर
आंधी तूफां बन के वो क्या-क्या उड़ाती है कि बस

देखता जब भी तुझे हूं सुन मेरी तू गुलबदन
साँस थमती और धड़कन लड़खड़ाती है कि बस

कारसाजी उसकी का अब जिक्र भी मैं क्या करूं
खुद ही देकर जख्म वो मरहम लगाती है कि बस

वक्त की रफ्तार बेढ़ब हैं सभी कहते यही
अपनो को भी यह पराए जो बनाती है कि बस

'श्याम' यूं है बस गया मेरे जिहन में दोस्तो
नाम लेते ही जुबां यूं लड़खड़ाती है कि बस


फ़ाइलातुन,फ़ाइलातुन,फ़ाइलातुन,फ़ाइ्लुन
photo by-shyam skha

29 comments:

  1. रास्तों की धूल ने मुझको सिखाए ये हुनर
    आंधी तूफां बन के वो क्या-क्या उड़ाती है कि बस....
    अच्छी लाइनें .

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  2. बेहतरीन गज़ल भाई!!

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  3. क्या कहने श्याम जी? खूबसूरत।

    सादर
    श्यामल सुमन
    09955373288
    www.manoramsuman.blogspot.com
    shyamalsuman@gmail.com

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  4. रास्तों की धूल ने मुझको सिखाए ये हुनर
    आंधी तूफां बन के वो क्या-क्या उड़ाती है कि बस....
    वक्त की रफ्तार बेढ़ब हैं सभी कहते यही
    अपनो को भी यह पराए जो बनाती है कि बस
    बहुत सुन्दर गज़ल के लिये बधाई

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  5. bahut achchhi ghazal
    badhai

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  6. क्या रदीफ़ चुनी है कि दिल बेकाबू हो गया. आप और चंद गिने चुने नाम हैं जिन्होंने गजल की आबरू बरकरार रखी है, बधाई के पात्र हैं. वक्त मिले तो अपना मेल बॉक्स भी देखिएगा.

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  7. ये विरह का दुख सगा सा हो गया है दोस्तो
    शूल सी इसकी चुभन इतना सताती है कि बस
    वाह श्याम जी वाह...क्या खूब रदीफ़ है...और क्या निभाया है आपने इस पूरी ग़ज़ल में...बहुत बहुत बधाई..
    नीरज

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  8. shyam ji,
    kis sher ki tareef karun aur kis ki naa karun
    nirnay lene men ye buddhi,bhatak jaati hai ki bas

    sabhi sher uttamottam.

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  9. तेरी सांसे जब मिलीं थी मेरी सांसों से सनम
    वो घड़ी बिजली बनी सी कौंध जाती है कि बस

    लाजवाब ग़ज़ल है......... श्याम जी आपकी कलम जब चलती है....... तो ग़ज़ल का स्त्रोत तो फूटना ही है......... शानदार शेरोन से सजी बेहतेरीन ग़ज़ल

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  10. देखता जब भी तुझे हूं सुन मेरी तू गुलबदन
    साँस थमती और धड़कन लड़खड़ाती है कि बस

    waah.....waah....waah
    kya baat hai lazwaab
    sundar abhiwyakti

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  11. रास्तों की धूल ने मुझको सिखाए ये हुनर
    आंधी तूफां बन के वो क्या-क्या उड़ाती है कि बस....
    बहुत ही सुंदर, जबाब नही
    धन्यवाद

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  12. वाह वाह वाह वाह
    बस मन करता है की दाद देता रहूँ
    बहुत सुन्दर गजल, वाह
    वीनस केसरी

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  13. आप सभी का आभार-गज़ल कबूलने के लिये।आप सरीखे गुणी जनों की हौसला अफ़जाई से मेरे गज़ल सफ़र को दिशा मिलती रहेगी ऐसी आशा है।
    श्याम

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  14. जानेमन इतनी तुम्हारी याद आती है कि बस
    रूह मिलने के लिये यूं कसमसाती है कि बस

    रास्तों की धूल ने मुझको सिखाए ये हुनर
    आंधी तूफां बन के वो क्या-क्या उड़ाती है कि बस
    - ye Sher bahut achcha laga
    Aur hamesha ki tarah bahut bahut pyara makta !
    'श्याम' यूं है बस गया मेरे जिहन में दोस्तो
    नाम लेते ही जुबां यूं लड़खड़ाती है कि बस

    Pranaam
    RC

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  15. Ek baat kehna bhool gayi ! Sath lagi potograph bahut achchi hai ..

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  16. दिल मेरा अब झूम के बस आपको padhataa गया
    हो गयी उम्मीद पूरी ग़ज़ल पढ़के अब तो बस ...

    अहा ये हुई ना बात ... आपकी आज की ग़ज़ल वाकई झुमाने वाला था क्या खूब रदीफ़ लगाये है आपने और क्या खूब उसकी परवरिश की है आपने... देरी से आनेके लिए मुआफी चाहूँगा मगर सच्ची में आपसे जो मुम्मिद रहती है वो आज पूरी हुई इस ग़ज़ल में ... बहोत बहोत बधाई

    अर्श

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  17. कारसाजी उसकी का अब जिक्र भी मैं क्या करूं
    खुद ही देकर जख्म वो मरहम लगाती है कि बस ।
    सुंदर ।

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  18. श्याम भाई छा गए बस
    बहुत बहुत खूबसूरत निबाहा है

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  19. श्याम जी
    बहुत खूब ।

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  20. वक्त की रफ्तार बेढ़ब हैं सभी कहते यही
    {अपनो को भी यह पराए जो बनाती है कि बस}
    परायों को भी यह अपना जो बनाती है कि बस|

    बहुत बहुत खूबसूरत निबाहा है आपने,
    कुछ न पूछिए बारबार बुलाती है कि बस |

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  21. वक्त की रफ्तार बेढ़ब हैं सभी कहते यही
    अपनो को भी यह पराए जो बनाती है कि बस

    शानदार ग़ज़ल की बेमिसाल "वक्त की रफ्तार"
    बधाई स्वीकार करें.

    चन्द्र मोहन गुप्त

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  22. achhi ghazal....

    वक्त की रफ्तार बेढ़ब हैं सभी कहते यही
    अपनो को भी यह पराए जो बनाती है कि बस

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  23. अहा
    कमाल की रदीफ़ और उस पे इतने बढ़िया शेर कहना...बस आपके के ही बस की बात है सर!

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  24. "कारसाजी उसकी का अब जिक्र भी मैं क्या करूं
    खुद ही देकर जख्म वो मरहम लगाती है कि बस"

    खास इस शेर के लिये अलग से तारीफ़ बनता था !

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  25. लाजवाब ग़ज़ल है...मिलन और विरह का अनुपम मिश्रण प्रस्तुत किया है।

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