दूसरों के सर बचाने हैं तुझे गरफिर तो तू अपनी ही जानिब मोड़ पत्थरकौन पूछे है, लियाकत को यहाँ पर
पेट भरना है तुझे तो तोड़ पत्थर
देखकर हालत बुतों की, हैं लगातेटूटने की आइने से होड़ पत्थरचिड़िया मारीं जब अहेरी हाथ में थातू हुआ इतिहास में चितौड़ पत्थर है खड़ा चौराहे पर बेटा खुदा काकायरों में तू भी है, चल छोड़ पत्थरबीच इन्सानों के कैसे फँस गया है तूदौड़ सकता है ,अगर तो,दौड़ पत्थर’श्याम जी’ सचमुच बुरा वक्त आने को है
छत पे अपनी आप भी लें जोड़ पत्थरफ़ाइलातुन,फ़ाइलातुन,फ़ाइलातुन
kaayron men tu bhi hai, chal chhod patthar......
ReplyDeletewaah waah waah
kya baat kah di
badhaai !
कौन पूछे है, लियाकत को यहाँ पर
ReplyDeleteपेट भरना है तुझे तो तोड़ पत्थर
बहुत ही बेहतरीन रचना बधाई
shabda sanyojan bahut hi badhiya hai ........bhaw to masaalaah achahhi rachanaao ke liye bahut dhnyaawaada
ReplyDeleteकौन पूछे है, लियाकत को यहाँ पर
ReplyDeleteपेट भरना है तुझे तो तोड़ पत्थर
bahut hi sundar!
कौन पूछे है, लियाकत को यहाँ पर
ReplyDeleteपेट भरना है तुझे तो तोड़ पत्थर
ज़िन्दगी की तल्ख़ सच्चाई से रूबरू करवाती ग़ज़ल....बेहतरीन...वाह...
नीरज
’श्याम जी’ सचमुच बुरा वक्त आने को है
ReplyDeleteछत पे अपनी आप भी लें जोड़ पत्थर
आपने उस वक़्त की याद करा दी जो हम अपने बुजुर्गों से सुनते थे की पाकिस्तान में वो बुरे वक़्त से निपटने की लिए छत पर ईंट जमा करके रखते थे ............. वैसे तो पूरी की पूरी ग़ज़ल तारीफ़ के काबिल है ..... लाजवाब
बढ़िया रचना ,बधाई.
ReplyDeleteबेहतरीन रचना.......... बधाई!!!!
ReplyDeleteउम्दा रचना
ReplyDeleteshyamji, behatareen rachna ke liye badhai sweekaren.
ReplyDeleteबीच इन्सानों के कैसे फँस गया है तू
ReplyDeleteदौड़ सकता है ,अगर तो,दौड़ पत्थर
ग़ज़ल का लाजवाब शेर.
बधाई.
चन्द्र मोहन गुप्त
देखकर हालत बुतों की, हैं लगाते
ReplyDeleteटूटने की आइने से होड़ पत्थर
-बहुत उम्दा!
पूरी गजल सहेजने लायक
ReplyDeleteफिर भी ये शेर बहुत पसंद आया
देखकर हालत बुतों की, हैं लगाते
टूटने की आइने से होड़ पत्थर
बीच इन्सानों के कैसे फँस गया है तू
दौड़ सकता है ,अगर तो,दौड़ पत्थर
नमन नमन
पत्थर मोड़ना भी चाहूं तो किस कदर? इतने बडे बडे़ हैं ये पत्त्थर:-)
ReplyDeleteरचना बहुत अच्छी लगी....बहुत बहुत बधाई....
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