माना तेरे हाथों में कोई पत्थर न था
पर क्या तेरी हर बात में नश्तर न था
सच बोलना आदत रही कब है मेरी
पर झूठ कहने का वहां अवसर न था
बीवी मेरी बच्चे मेरे मैं भी तो था
था तो मकां भी मेरा लेकिन घर न था
जलथल हुआ था शहर मेरे दोस्तो
बादल लेकिन वहां बरसा जमकर न था
मौजूद था महफ़िल में यूं तो“श्याम’ भी
पर उसका वो पहले जैसा तेवर न था‘
मेरा एक और ब्लॉग
http://katha-kavita.blogspot.com/
माना तेरे हाथों में कोई पत्थर न था
ReplyDeleteपर क्या तेरी हर बात में नश्तर न था..
vaah.
सच बोलना आदत रही कब है मेरी
ReplyDeleteलेकिन वहां झूठ कहने का अवसर न था
बहुत खूब, वाह!
माना तेरे हाथों में कोई पत्थर न था
ReplyDeleteपर क्या तेरी हर बात में नश्तर न था
सच बोलना आदत रही कब है मेरी
लेकिन वहां झूठ कहने का अवसर न था
वाह श्याम भाई वाह ! बेहतरीन !!
सच बोलना आदत रही कब है मेरी
ReplyDeleteलेकिन वहां झूठ कहने का अवसर न था
बहुत खूब।
सच बोलना आदत रही कब है मेरी
ReplyDeleteलेकिन वहां झूठ कहने का अवसर न था
Waah! bahut bhadiya.....Aabhar!!
सच बोलना आदत रही कब है मेरी
ReplyDeleteलेकिन वहां झूठ कहने का अवसर न था
waah
माना तेरे हाथों में कोई पत्थर न था
ReplyDeleteपर क्या तेरी हर बात में नश्तर न था
बहुत सुंदर गजल जी
धन्यवाद
श्याम जी मतला और ये शेर खास पसंद आया
ReplyDeleteसच बोलना आदत रही कब है मेरी
लेकिन वहां झूठ कहने का अवसर न था
बाकी के शेर के भाव भी पसंद आये मगर पढ़ने कमें कुछ अटकाव महसूस हो रहा है
ऐसा शायद बहर की वजह से हो जिसे मैंने ज्यादा गुनगुनाया नहीं है नहीं है
सच बोलना आदत रही कब है मेरी...
ReplyDeleteवाह!
बहुत ही खूबसूरत ।
ReplyDeleteवाह जी बहुत खूब...
ReplyDeleteसच बोलना आदत रही कब है मेरी
लेकिन वहां झूठ कहने का अवसर न था
मौजूद था महफ़िल में यूं तो“श्याम’ भी
ReplyDeleteपर उसका वो पहले जैसा तेवर न था‘
lajabab...
बीवी मेरी बच्चे मेरे मैं भी तो था
ReplyDeleteथा तो मकां भी मेरा लेकिन घर न था
वाह...वाह...श्याम जी वाह...इस बेहद खूबसूरत ग़ज़ल के लिए दिली दाद कबूल फरमाएं...
नीरज
बीवी मेरी बच्चे मेरे मैं भी तो था
ReplyDeleteथा तो मकां भी मेरा लेकिन घर न था
यह आज की हकीक़त है ......बहुत अच्छा लगा पढ़कर !