रहेंगे हम, घर में अपने ही मेहमान कब तक
रखेंगे यूं बन्द ,लोग अपनी जुबान कब तक
फ़रेब छल,झूठ आप रखिये सँभाल साहिब
भरोसे सच के भला चलेगी दुकान कब तक
चलीं हैं कैसी ये नफ़रतों की हवायें यारो
बचे रहेंगे ये प्यार के यूं मचान कब तक
हैं कर्ज सारे जहान का लेके बैठे हाकिम
चुकाएगा होरी,यार इनका लगान कब तक
इमारतों पर इमारतें तो बनायी तूने
करेगा तामीर प्यार का तू मकान कब तक
रही है आ विश्व-भ्रर से कितनी यहां पे पूंजी
मगर रहेंगे लुटे-पिटे हम किसान कब तक
रहेगा इन्साफ कब तलक ऐसे पंगु बन कर
गवाह बदलेंगे आखिर अपना बयान कब तक
दुकान खोले कफ़न की बैठा है 'श्यम' तो अब
भला रखेगा 'वो' बन्द अपने मसान कब तक
मफ़ाइलुन फ़ा,मफ़ाइलुन फ़ा,मफ़ाइलुन फ़ा
मेरा एक और ब्लॉग
http://katha-kavita.blogspot.com/
ग़ज़ल बहुत बढ़िया लगी
ReplyDeleteये पंक्तियाँ बहुत अच्छी लगी
इमारतों पर इमारतें तो बनायी तूने
करेगा तामीर प्यार का तू मकान कब तक
रही है आ विश्व-भ्रर से कितनी यहां पे पूंजी
मगर रहेंगे लुटे-पिटे हम किसान कब तक
रहेगा इन्साफ कब तलक ऐसे पंगु बन कर
गवाह बदलेंगे आखिर अपना बयान कब तक
रहेगा इन्साफ कब तलक ऐसे पंगु बन कर
ReplyDeleteगवाह बदलेंगे आखिर अपना बयान कब तक
जबाब नही जी, बहुत सुंदर गजल.
धन्यवाद
फ़रेब छल,झूठ आप रखिये सँभाल साहिब
ReplyDeleteभरोसे सच के भला चलेगी दुकान कब तक
श्याम जी
बहूत बढ़िया शेर है
जब शायर को यह शेर कहना पद जाये तो सामाजिक पतन का अनुमान सहज लगाया सकता है
बहुत कुछ सोचने को मजबूर कर गया ये शेर
फ़रेब छल,झूठ आप रखिये सँभाल साहिब
ReplyDeleteभरोसे सच के भला चलेगी दुकान कब तक
Sach hai bhai...kalyug hai...par shayad koi avatar nahi anewala hai...abto aam admi kohi banna hai Krishna, Raam ya Nrisingha.
इमारतों पर इमारतें तो बनायी तूने
ReplyDeleteकरेगा तामीर प्यार का तू मकान कब तक
प्यार ही तो नहीं है मकान तो बहुतेरे हैं
सुन्दर अहसास की गज़ल
फ़रेब छल,झूठ आप रखिये सँभाल साहिब
ReplyDeleteभरोसे सच के भला चलेगी दुकान कब तक
aapki gazlon ka taaza pan .. kuch n kuch kahne ki ada lajawaab hai ... rozmarra ki sachhaaiyon ko baakhoobi bayaan karte hain aap ...
सटीक सार्थक अतिसुन्दर वाह !!!
ReplyDeleteहर शेर लाजवाब....बहुत ही सुन्दर इस ग़ज़ल के लिए आभार..
Shyam Ji...Hamesha ki tarah..lajawab ghazal..Waah
ReplyDeleteNeeraj
बहुत बढ़िया और शानदार ग़ज़ल लिखा है आपने! हर एक पंक्तियाँ लाजवाब है!
ReplyDeleteइमारतों पर इमारतें तो बनायी तूने
ReplyDeleteकरेगा तामीर प्यार का तू मकान कब तक
बेमिसाल -बेनजीर प्रस्तुति........क्या कह दिया आपने.........बहुत शानदार....!
दुकान खोले कफ़न की बैठा है 'श्यम' तो अब
ReplyDeleteभला रखेगा 'वो' बन्द अपने मसान कब तक
BEHATREEN shyaamji... bahut khoob likhaa he.
फ़रेब छल,झूठ आप रखिये सँभाल साहिब
भरोसे सच के भला चलेगी दुकान कब तक..
par sach to janaab sach he..ek din ka bharosaa jo detaa he..kher..