Monday, March 15, 2010

मत जुबाँ सी, अरे ‘श्याम’ तू

दर्द दिल में है पर मुस्करा
साँस खुलकर ले और खिलखिला


कर्ज तेरा है तू ही चुका
सर मगर अपना तू मत झुका

हाँ गिले-शिकवे होंगे सदा
तोड़ मत प्यार का सिलसिला

गर नहीं दम कि सच कह सके
बैठ तू बन कर इक झुनझुना

मत जुबाँ सी, अरे ‘श्याम’ तू
चोट खाई है तो बिलबिला

फ़ाइलुन,फ़ाइलुन,फ़ाइलुन
2111, 2111, 2111,



मेरा एक और ब्लॉग
http://katha-kavita.blogspot.com/

12 comments:

  1. # भारतीय नववर्ष 2067 , युगाब्द 5112 व पावन नवरात्रि की शुभकामनाएं
    # रत्नेश त्रिपाठी

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  2. क्या बात है, बहुत खूब!

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  3. हाँ गिले-शिकवे होंगे सदा
    तोड़ मत प्यार का सिलसिला

    अच्छी ग़ज़ल!

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  4. खुबसुरत अंदाज।

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  5. सुन्दर भावाभिव्यक्ति बेहतरीन गजल

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  6. अच्छी गजल...
    आपका पेज जल्द नहीं खुलता कृपया इसे व्यवस्थित करें .

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  7. गर नहीं दम कि सच कह सके
    बैठ तू बन कर इक झुनझुना

    waah...lajawab...
    Manoj ji ki baat par bhi dhyan den...

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  8. गर नहीं दम कि सच कह सके
    बैठ तू बन कर इक झुनझुना
    मत जुबाँ सी, अरे ‘श्याम’ तू
    चोट खाई है तो बिलबिला..
    बहुत सुन्दर भाव और अभिव्यक्ति! उम्दा प्रस्तुती!

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  9. I apologise shayam ji ...but I expect much more from you...I think you know who am I

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  10. हाँ गिले-शिकवे होंगे सदा
    तोड़ मत प्यार का सिलसिला

    वाह ! बहुत खूब!!

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