Friday, June 12, 2009

फुटकर शे‘र नं -३



दिल में उतरी थी वो बिजलियों की तरह
जब गई तो गई आंधियों की तरह

15 comments:

  1. बहुत ही अच्छी रचना....!हमारे यहाँ पर तो सच में बिजली इसी तरह आती जाती रहती है.....

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  2. श्याम जी ,
    बात आपने बहुत मज़ेदार कही ,बधाई.
    मगर आपकी बात में यूँ कहता हूँ.

    दिल में उतरी थी वो बिजली की तरह
    हाय जब गयी तो गयी आंधी की तरह

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  3. wah bahut khoob,

    main iski parody banata to.......

    dil pe utri thi wo billion ki tarah
    jab gai to gai chuhiyon ki tarah.

    ha ha.

    mast futkar hai shyam ji.

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  4. सुन्दर। वाह।।

    सादर
    श्यामल सुमन
    09955373288
    www.manoramsuman.blogspot.com
    shyamalsuman@gmail.

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  5. AAPSE HAMESHAA JYADAH KI UMMID HOTI HAI .... BADHAAYEE

    ARSH

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  6. लाजवाब श्याम जी.............कमाल का शेर.
    प्रणाम मेरा दुबई से

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  7. बहुत खूब श्याम जी.....वैसे ६० की उम्र में .....
    "दिल में उतरी थी वो बिजलियों की तरह
    जब गई तो गई आंधियों की तरह"
    हा...हा...हा...

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  8. .एक निवेदन है कभी हम लोंगो के ब्लॉग पर भी नजरें इनायत कर लिया करें .

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  9. प्रेम फ़रुक्खाबादी का करेक्सन सही,व बहुत सटीक,उम्दा है, वो एक बचन है तो बिजलियों.आंधियों अशुद्ध होगा।

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  10. आदरणीय गुप्ता जी,आंधी और आंधियों को बेशक हम एकवचन व बहुवचन लेलें लेकिन एक आंधी आपने कभी देखी है-आंधी एक वचन तो त्ब होगा जब हम कहें कि ५ मिनट की एक आंधी और १० मिनट चले तो दो आंधी १५....अत: इस शे‘र में आधियों बिजलियों जायज प्रयोग है यह मैं ही नहीं गज़ल के अनेक जानकार कहते हैं
    फ़िर भी आपका मेरी गज़ल पर तवज्जो देना अच्छा लगा-मैं इसे गज़ल का सत्संग कहता हूं
    श्याम सखा

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